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Hindi Nepali Stories

क्या हम कभी सुख के लिए धन्यवाद देने मंदीर गये है

एक अमीर आदमी था । उसने अपने गांव के सब गरीब लोगों के लिए और भिखमंगो के लिए माह- वारी दान बांध दिया था । किसी को दस रुपये मिलते महिने में तो किसी को बीस रुपये मिलते । वे हर एक तारिख को आकर अपने पैसे ले जाते थे । वर्षो से एसा चल रहा था । एक भिखमंगा था जो बहुत ही गरीब था और जिसका बडा परिवार था । उसे रुपये हर महीने मिलते थे । वह हर एक तारीख को आकर अपने पैसे ले जाता था । महीने की एक तारिख आई । वह रुपये लेने गया, बूढा भिखारी । लेकिन उस धनी के मैनेजर ने कहा कि भाई, थोडा अदल-बदल हुआ है । अब से तुम्हें पचास रुपये की जगह सिर्फ पच्चीस रुपये अब तुम्हें मिलेंगे । यह सुनकर भिखारी बहुत नाराज हो गया ।Spiritual Inspirational story. उसने कहा, क्या मतलब ? मुझे तो हमेशा से पचास रुपये मिलते रहे हैं । और बिना पचास रुपये लिए मैं यहाँ से नहीं हटुंगा । क्या वजह है पच्चीस देने की? मैंनेजर ने कहा कि जिनकी तरफ से तुम्हें रुपये मिलते हैं उनकी बेटी का विवाह है, और उस विवाह में बहूत खर्च होने वाला है । और यह विवाह कोई साधारण विवाह नहीं है । उनकी एक ही बेटी है करोडों का खर्च है । इस वजह से अभी सम्पत्ति में थोडी असुविधा है । आपको पच्चीस ही मिलेंगे । उस भिखारी ने गुस्से से टेबल पीटी और कहा, इसका क्या मतलब ? तुमने मुझे क्या समझ रखा है? मैं कोई बिरला नहीं हूँ? मेरे पैसे काट कर और अपनी लडकी की शादी? अगर अपनी बेटी की शादी में लुटाना है तो अपने पैसे लुटाओं । कई सालो से उसे पचास रुपये मिलते आ रहे है, इसलिए वह आदी हो गया है, अधिकारी हो गया है, वह अनको अपने मानने लगा है । उसमें से पच्चीस काटलेने पर उसका विरोध है । हमें जो मिला है जीवन में, उसे हम अपना मान रहे है । उसमें से आधा कटेगा तो हम विरोध तो करेंगे, लेकिन जो हमे अब तक मिला है जो अपना नहीं था वह मिला और क्या हमने इसके लिए कभी धन्यवाद भी दिया है । इसने कभी उस अमीर के पास जाकर धन्यवाद तक नही दिया की तु पचास रुपये महीने हमें देता है, इसके लिए धन्यवाद । लेकिन जब कटे तो विरोध । सन्देश :क्या हम कभी सुख के लिए धन्यवाद देने मंदीर गये है ? बस दूख की शिकायत लेकर ही मंदीर गये है । जीवन जैसे सुंदर उपहार के लिए हमारे मन में कोई धन्यवाद नहीं है, लेकिन म्रत्यु के लिए बडी शिकायत । सुख के लिए कोई धन्यवाद नहीं है, दूख के लिए बडी शिकायत । जब भी हमने पर्मात्मा को पुकारा है तो कोई न कोई पिडा या दूख के लिए । क्या हमने कभी धन्यवाद देने के लिए उसे पुकारा है?

 

 

 

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