एक बार एक राजा था। उसके पास सब कुछ था लेकिन वह सुखी नहीं था। वह समझ नहीं पाता था कि कैसे ख़ुश रहा जाए? उसे यह लगने लगा कि वह बीमार है जबकि वह बिलकुल स्वस्थ दिखता था।
राजा के आदेश पर राज्य के एक से एक अच्छे डॉक्टरों को बुलाया गया लेकिन कोई भी उसका इलाज नहीं कर पाया।
अंत में एक बुद्धिमान वैद्य ने राजा की मर्ज समझ ली। उसे एक युक्ति सूझी उसने कहा, "यदि महाराज एक रात्रि के लिए किसी ख़ुश व्यक्ति कि कमीज़ पहन कर सोएं तो इनकी बीमारी दूर हो सकती है।
सैनिकों को राज्य भर में किसी ख़ुश आदमी को खोजने और उसकी कमीज़ लाने का आदेश दिया गया। पूरे राज्य में खोजने पर भी कोई ख़ुश व्यक्ति खोजा नहीं जा सका।
किसी को अपनी निर्धनता का दुःख था तो कोई धनवान और धन की लालसा पाले हुआ था। किसी को दुःख था कि उसकी पत्नी का निधन हो गया था, तो किसी को शिकायत थी कि उसकी पत्नी जीवित क्यों है! किसी को संतान न होने का दुःख था तो कोई संतान से दुःखी था । वस्तुतः सब जन दुःखी थे। कहते भी हैं, ‘नानक दुखिया सब संसार'।
तभी सैनिकों को गाँव के दवार पर एक भिखारी मदमस्त लेटा हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी मस्ती में सीटी बजा-बजा कर, हँस-हँसकर गाना गाता हुआ लोटपोट हुए जाता था। वह अत्यधिक प्रसन्नचित्त जान पड़ता था।
सैनिक उसके पास रुकते हुए उसका अभिवादन कर उससे कहा, "ईश्वर आपका भला करे। आप काफी प्रसन्न दिखाई देते हैं।
"हाँ, मैं ख़ुश हूँ और मुझे किसी बात का कोई दुःख नहीं है।"
सैनिक उसे पाकर अभिभूत हो गये थे। उन्होंने उसे कहा कि यदि वह एक रात के लिए अपनी कमीज़ उधारी दे दे तो वे उसे एक सौ स्वर्ण मुद्राएँ दे देंगे।
यह सुनकर वह जोर-जोर से हँसते-हँसते लोटपोट हो गया फिर किसी तरह अपनी हँसी रोकते हुए बोला, " मैं अवश्य ही अपनी कमीज़ दे देता पर...! मेरे तन पर कोई वस्त्र नहीं है।
राजा को हर दिन का समाचार दिया जाता था जिससे वह यह जान सका कि दुनिया में कितने दुःख व्याप्त हैं। अब सैनिकों ने यह समाचार दिया कि उन्हें एक व्यक्ति मिला जो पूर्णतया प्रसन्न व संतुष्ट है लेकिन उसके पास तन ढकने को वस्त्र नहीं हैं!
अब राजा जीवन के गूढ़ तत्व को समझ गया। वह अपनी व्यर्थ के भ्रम को छोड़ कर जनता की भलाई में लग गया। अब राजा व प्रजा दोनों सुखी थे।