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Hindi Nepali Stories

Hindi story लाइन में लग

जीवन को पूर्णता की नहीं, प्रेम की ज़रूरत है| प्रेम सही व्यक्ति मिलने से नहीं, मिले व्यक्ति को सही से समझने से उपजता है|

 

"जब आप किसी को माफ कर देते हो,” ईशा रोष को मना रही थी, “तो वो आपके मन में जगह घेरना बंद कर देते हैं| किसी को पूरी तरह माफ कर देना वो सबसे बड़ा बदला है जो आप किसी से ले सकते हो|”

“न तुमने माफ किया है, न तुम भूले हो,” रोष ने जवाब दिया, “अगर अभी बदला लेने की ही सोच रहे हो| कन्फ़्यूशियस ने कहा था, कि बदला लेने की राह पे निकलने से पहले कब्रें दो खोदना|”

“तो, आप अब मुझसे नाराज़ नहीं?” ईशा ने पूछा|

“मैंने ऐसा तो नहीं कहा!” रोष भुनभुनाया|

“जानते हो, पहले माफी मांगने वाला सबसे बहादुर होता है,” ईशा ने हल्के से उसे छुआ| “पहले माफ करने वाला सबसे ताकतवर| और पहले भूलने वाला सबसे खुश|”

“तो,” रोष गुर्राया, “तुम चाहती हो मैं बहादुर, मज़बूत और खुश बनूँ?”

ईशा ने हामी भरी|

“माफी माँग के, माफ करके, भूल के?” उसने उससे फिर पूछा|

ईशा ने और ज़ोर से सिर हिलाया|

“ताकि तुम उत्पात मचाती रहो,” रोष भड़क उठा| “नहीं! मैंने कुछ ऐसा नहीं किया, जिसके लिए मैं क्षमा माँगूं| और फिलहाल, मैं क्षमा करने के मूड में भी नहीं हूँ|”

“प्रतिक्रिया दिल में होती है,” ईशा ने फिर कोशिश की, “लेकिन जवाब देने का काम दिमाग करता है| माफी सबसे ऊँचे दर्जे का जवाब है| जवाब दो! खाली खफा हो के न बैठे रहो| इससे तो बेहतर हो आप|”

उसने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन वो सुन रहा था| ईशा प्रोत्साहित हुई|

“माफ़ कर दो!” ईशा ने ज़ोर दिया| “खुद पे एहसान करो| अपना खून क्यों साड़ते हो? जिन्होंने आपका बुरा किया है, जिनसे आप में ये प्रत्युत्तर – प्रतिशोध की भावना जाग रही है, उनसे अपने-आप को अलग कर लो|”

“बहुत मुश्किल नहीं है ऐसा करना| सब आपके दृष्टिकोण में है| आप कह सकते हो कि पनीर तब बनता है जब दूध खराब हो जाता है, और माखन बनाने में दही खराब हो जाती है| आप उसे देख सकते हो जो खराब हो गया| अपूर्णता पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हो| चीज़ों को देखने का ये एक नज़रिया है|”

"या आप ये देख सकते हो कि ब्रह्माण्ड में सब कुछ परिपूर्णता के एक स्तर से दूसरे पर जा रहा है| दूध परफेक्ट है, और जब उसकी दही बनती है, तो वो भी परफेक्ट होती है|”

“आप दही से क्रीम निकाल सकते हो, और वो सम्पूर्ण है, और फिर उससे आप मक्खन बनाते हो, और वो भी संपन्न है| ये देखने का दूसरा नज़रिया है|”

“हम दोनों के बीच कुछ तो निष्कलंक है| क्योंकि अगर न होता, तो हम अभी भी साथ न होते| फिर भी, केवल अपूर्ण को देखना आसान है...”

“हमारी मर्सिडीज़ परफेक्ट है, लेकिन उसका हैंडल काम नहीं करता| हमारा ध्यान सिर्फ बिगड़े हैंडल पर जाता है| हमारी ज़िन्दगी परफेक्ट है, लेकिन हमारा बटुआ अभी-अभी खो गया है| हमारा ध्यान सिर्फ उस पर रहता है, जो हमने खो दिया|”

“लेकिन ये इमपरफेक्शन है, जो परफेक्शन को कीमती बनाती है| ये अपूर्णता है, जो परिपूर्ण को सम्पूर्ण करती है! अपूर्ण की ज़रूरत है हमें, ताकि हम पहचानना और मूल्यवान समझना जारी रखें – उसे, जो उत्तम है|”

“हमारे आस-पास कितना कुछ परफेक्ट है, अगर हम देखना चाहें तो| उसे देखना शुरू कर सकें, तो सम्पन्नता के एक तल से दूसरे तल तक जाने का हमारा सफ़र भी शुरू हो सकेगा...”

“सुनने में परफेक्ट लगता है,” रोष ने बात काट दी, “जब तक कि करीब से न देखो| अखंड सम्पूर्णता खुद एक मृग-मरीचिका है – मन का एक आविष्कार, क्योंकि मन को परफेक्शन भाता है|”

“मन निर्विकार के लिए ललकता है| लेकिन वो सिर्फ एक छलावा है, अनंत और शून्य की तरह! अवधारणायें जो परिमित की डिग्री समझने के लिए बनाई गईं|”

“असीम को किसने देखा? पूर्णत्व को किसने अनुभव किया? हम अपूर्णता से घिरे हैं| जीवन को परिपूर्णता की नहीं, प्यार, समझ और स्वीकृति की आवश्यकता है|”

“हम परफेक्ट इंसान को पाकर प्यार तक नहीं पहुँचते, इम्पर्फेक्ट इंसान को परफेक्टली देखना सीखकर पहुँचते हैं! जो तुम नहीं करते...”

“मैं परफेक्ट नहीं,” ईशा प्यार से मुस्कराई| “पर आप तो समझदार हो| मुझे परफेक्टली देखने की कोशिश करो न प्लीज़ ...”

वो जानता था वो कब हार गया, लेकिन ये कुबूल करने की कोई जल्दी नहीं थी उसे|

"नहीं," सपाट-चेहरा बनाकर उसने जवाब दिया| “मेरी हमदर्दी का तुम फिर नाजायज़ फायदा उठाओगी| मैं तो बस अब लाइन में लगना चाहता हूँ|”

"लाइन में लगना?” ईशा को हैरानी हुई|

"सड़क पर एक बार एक आदमी को बड़ी भीड़ दिखी,” उसने खुलासा किया| “एक बड़ी हैरतंगेज़ शवयात्रा|”

“मुर्दा ढोने वाली एक काली कार के पीछे वैसी ही एक और कार चली आ रही थी, पहली से करीबन 50 फीट पीछे| इस दूसरे काले शववाहन के पीछे, पट्टे से बंधे अपने कुत्ते को लेकर एक अकेला आदमी चल रहा था| उसके पीछे, थोड़ी दूरी पर, कुछ सौ पुरुष – कतार बाँध कर चले आ रहे थे|”

“वो अपनी जिज्ञासा पर काबू नहीं रख सका|”

“पूरी इज्ज़त से, वो कुत्ते वाले आदमी के पास पहुँचा और बोला, “आपके नुकसान के लिए बहुत अफसोस है मुझे, और शायद आपको परेशान करने का ये ठीक वक़्त भी नहीं, पर ऐसी अंत्येष्टि मैंने आज तक नहीं देखी| ये किसका अंतिम संस्कार है?”

“मेरी पत्नी का|”

“क्या हुआ था उसे?”

“वो मुझ पर चिल्लाई| मेरे कुत्ते ने उसपर हमला करके उसे मार दिया|”

“लेकिन दूसरी शव गाड़ी में कौन है?” उसने आगे पूछा|

“मेरी सास,” आदमी ने जवाब दिया| “उसने मेरी पत्नी की मदद करनी चाही| कुत्ता उसपर भी चढ़ दौड़ा|”

एक गहन बोध-पूर्ण मौन कुछ पल के लिए दोनों मर्दों को जोड़ गया|

"वाह!" अचानक प्रेरित होकर वो पूछ बैठा, "आपका कुत्ता उधार मिल सकता है मुझे?”

“लाइन में लग जा!" आदमी ने जवाब दिया।

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