एक बार एक जीवविज्ञानी द्वारा एक एक्सपेरिमेंट किया गया | एक शार्क मछली को एक बड़े टैंक में डाला गया और कुछ छोटी मछलियों को उस टैंक में छोड़ा गया| जैसे ही शार्क ने छोटी मछलियों को टैंक में देखते ही हमला कर और उसे अपना भोजन बना लिया|
अब एक टैंक के बीचों-बीच एक मजबूत स्पष्ट कांच डालकर, टैंक को दो भागों में बाँट दिया गया| एक हिस्से में शार्क को छोड़ा गया और दूसरे हिस्से में छोटी छोटी मछलियों को छोड़ा गया|
छोटी मछलियों को देखकर, शार्क ने फिर हमला किया लेकिन बीच में स्पष्ट कांच की दीवार होने से शार्क उन छोटी मछलियों तक नहीं पहुँच पा रही थी| शार्क छोटी मछलियों तक पहुँचने का बार बार प्रयास करती और हर बार शार्क का मुंह उस कांच से टकरा जाता|
इस प्रयोग को कई हफ्तों तक दोहराया गया और हर बार शार्क छोटी मछलियों पर हमला करती लेकिन बीच में कांच की दीवार होने से वह वहां तक नहीं पहुँच पाती और कुछ समय बाद थककर हार मान लेती|
धीरे धीरे शार्क के प्रयास कम होते गए| शार्क यह समझ चुकी थी कि वह उन मछलियों तक नहीं पहुँच सकती| अब वह बहुत कम प्रयास करती और बहुत जल्द थककर हार मान लेती|
कुछ हफ़्तों बाद टैंक के बीच में लगे स्पष्ट कांच को हटा दिया गया| लेकिन आश्चर्य कि शार्क ने उन छोटी मछलियों पर हमला नहीं किया| शार्क यह मानने लगी थी कि वह कभी भी छोटी मछलियों तक नहीं पहुँच सकती और इसीलिए बीच में कोई अवरोध न होने के बावजूद शार्क ने कोई प्रयास नहीं किया|
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