नौकरी की तलाष मे भटकते-भटकते एक दिन shekh chilli षहर आ पहूंचा, सौभाग्य से shekh chilli को शहर में काम मिल गया। एक दिन shekh ji के मालिक ने उसे मनी आर्डर फार्म और कुछ रूपये दिये और कहा कि इन्हें मनीआर्डर कर आओ। मालिक की बात सुन shekh ji मन ही-मन सोचने लगे कि तार से रुपये किस प्रकार जायेंगे ? उसने डाकघर में पहूंचकर तारबाबु से पुछा तो तार बाबु ने कहा क्यों नहीं चले जाते है। एक दिन शेख जी को वेतन मिला तो उन्हें याद आया कि उनकी बेगम ने चलते समय कहा था कि चमेली का तेल भेज देना। उन्होंने उसी समय चमेली के तेल की षिषी खरीदी ओर तार घर पहूंच कर कहा- इसे तार से भेज दिजिए। जल्दी पहूंच जायेगी। तार बाबु समझ गया कि यह कोई बेवकुफ आदमी है। उसने उससे तेल की शीशी लेकर रख ली और दिन शेख जी वहां से चले आये। कुछ समय बाद घर से चिठ्ठी आई कि तेल की शीशी अभी तक नहीं आयी। क्या कारण है ? क्योंजी जल्दी के कारण तो मैने शीशी तार से भेजी थी और वह अब तक मेरे यहां नही पहूंची ? षेखजी ने थोडा झल्ला कर तारबाबु से पुछा बात यह हैं कि जब तुम्हारी शीशी तार से जा रही थी, तब किसी ने उधर से डंडा तार से भेज दिया था। तुम्हारी शीशी उस डंडे से टकराकर टुट गई। अब तुम ही बताओ मै क्या कर सकता हू? बाबू ने उत्तर दिया हां भाई इसमे तुम्हारा क्या दोष है? यदि मुझे वह डंडा भेजने वाला मिल जाये तो उसका सिर फोड दूं। यह कहकर वहंा से शेख जी चले आये।
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