एक फकिर था। एक बहुत बडे बादशाह से उसका बहुत गहन प्रेम था । उस फकिर से गांव के लोगों ने कहा, बादशाह तुम्हें इतना आदर देते हैं, इतना सम्मान देते हैं । उनसे कहो कि गांव में एक छोटा सा स्कूल खोल दें । उसने कहा, मैं जाऊं, मैंने आज तक कभी किसी से कुछ मांगा नहीं, लेकिन तुम कहते हो तो तुम्हारे लिए मांगू । वह फकिर गया । वह राजा के भवन में पहुंचा । सुबह का वक्त था और राजा अपनी सुबह की नमाज पढ रहा था । फकिर पीछे खडा हो गया । नमाज पूरी की, प्रार्थना पूरी की । बादशाह उठा । उसने हाथ ऊपर फैलाया और कहा, हे परमात्मा, मेरे राज्य की सीमाओं को और बडा कर । मेरे धन को और बढा, मेरे यश को और दूर तक आकाश तक पहुंचा । जगत की कोई सीमा न रह जाए जो मेरे कब्जे में न हो; जिसका मैं मालिक न हो जाऊं । हे परमात्मा, ऐसी कृपा कर । उसने प्रार्थना पूरी की, वह लौटा । उसने देखा कि फकिर सीढियों से नीचे उतर रहा है । उसने चिल्लाकर आवाज दी क्यों वापस लौट चले ? फकिर ने कहा, मैं सोचकर आया था कि किसी बादशाह से मिलने आया हूं । यहां देखा कि यहां भी भिखारी मौजुद है । और मैं तो दंग रह गया, जितनी बडी जिसकी मांग हो उतना ही बडा वह भिखारी होगा । तो आज मैंने जाना कि जिसके पास बहुत कुछ है, बहुत कुछ होने से कोई मालिक नहीं होता । मालिक की पहचान तो इससे होती है कि कितनी उसकी मांग है । अगर कोई मांग नहीं तो वह मालिक है, बादशाह है, और अगर उसकी बहुत बडी मांग है तो उतना बडा भिखारी है । दुनिया बडी अजिब है । यहां जो जितना बडा धनी है वही भितर से उतना ही निर्धन भी है । निर्धन होता है । और बडे से बडे पर्दो पर बैठा हुआ व्यक्ति अपने भीतर बहुत दयनीय और दरिद्र होता है । अपने को जितने में बहुत असफल और असमर्थ होते है ।
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