कुछ लोग अपने जीवन को दुसरे के हवाले कर देते है. यादों में जीना पसंद करते है. उसके लिए सबकुछ वो यादे ही रहता है जो अपने साथी के साथ बिताये होते है. उनको दुनियाँ से नाता ही नहीं रहता है. बस खोए रहते, यादों में ही मस्त रहते है.
मैं उसके बहुत ही करीब था. ‘कुंज’ हाँ यही नाम है उसका. दोस्त था मेरा. हमलोग साथ खेलते, साथ पढ़ते और एक साथ ही स्कुल जाते. स्कुल में हमारी जोड़ी भी मशहूर थी. हम एक साथ बड़े हुए. एक ही company में job भी join किया. हमारा समय बहुत ही अच्छा कट रहा था. हमलोग अपने लाइफ में बहुत ही खुश थे. यह ख़ुशी तब और दुगनी हो गई जब एक हमसफर मिला.
कुंज का शादी एक बहुत खुबसूरत और सुशील लड़की से हुआ. जितना खुबशुरत कुंज था उतना ही खुबशुरत उसकी पत्नी रीमा थी. मैं भी कभी-कभी उसके घर जाया करता था. मैंने कभी उनको लड़ते हुए नहीं देखा. कुंज का टिफन तो वह खुद कभी लेकर ऑफिस आया करती