काम धंधे की तलाश में एक दिन शेखजी गाँव से शहर आए | वे रात के समय शहर पहुंचे | शहर में उनका कोई जान-पहचान वाला नहीं था और ऊपर से वे रात के समय शहर में पहुंचे थे इसलिए न तो रहने का प्रबंध हुआ और न ही खाने-पिने का | वे अँधेरी रात को अपना थैला उठाए सडको पर भटक रहे थे | तभी कुछ सिपाहियों ने उन्हें चोर समझकर पकड़ लिया और उनके थैले को चोरी का माल बताकर जब्त कर लिया | फिर उन्हें जेल में डाल दिया | एक रात वे किसी तरह अपनी कोठरी से बाहर आए, उस समय रात का एक बज रहा था, वे छुपते- छुपते जेल की दिवार के पास आए | अचानक उनके रोंगटे खड़े हो गए | वहां उन्हें एक परछाई-सी दिखाई दी | वे लौटकर पीछे जाना चाहते थे, लेकिन तभी उन्हें अचानक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी — “मेरे साथ चलो, आओ यहाँ से भाग चलें |” वह शेरा नामक एक खूंखार डाकू था जो पांच साल की सजा भुगत रहा था | शेखजी उसी shaan उसके साथ हो लिए | शेरा व् शेखजी अब एक ऊँची दिवार के पास खड़े थे | शेरा ने अपनी कमर से बंधी एक मजबूत रस्सी निकाली और उसे खोलकर उसका एक सिर दिवार के पार फेंक दिया | डोरी का एक सिर शेर के हाथ में था और दूसरा बाहर की और शेरा के किसी साथी ने लपक लिया था | शेरा ने रस्सी का सिरा पकड़कर खिंचा तो रस्सी तन गई | इसका तात्पर्य था की दूसरी तरफ से रस्सी को मजबूती से पकड़ लिया गया हैं | “जब में रस्सी के सहारे दिवार पर चढ़ जाऊ, तब तुम भी इसी रस्सी के सहारे दिवार पर चढ़कर बाहर आ जाना |” शेरा ने शेखजी से कहा शेरा ने दिवार पर चढने से पहले रस्सी को खींचकर देखा | शेखजी उसे मजबूती से थामें थे | शेरा अब दिवार से उस पार उतरने लगा | अचानक शेखजी के दिमाग में जाने कहाँ से बुद्धि की एक लहर आ गई जब शेरा उत्तर जाएगा तो मुझे कौन उतारेगा ? रस्सी कौन पकड़ेगा ? यह विचार मन में आते ही उन्होंने रस्सी छोड़ दी | शेरा अधार में था, डोरी छोड़ते ही वह धड़ाम से जमीं पर आ गिरा | उसके धमाके से सारे सिपाही दौड़ते हुए आए और शेरा जख्मी हालत में पकड़ लिया गया | शेखजी चारदीवारी के पास ही खड़े थे इसलिए उनका बयान लिया गया | शेखजी बोले-“में एक ईमानदार आदमी हूँ तथा बेकसूर जेल में पहुंचा दिया गया हूँ, इसके बावजूद कानून के प्रति मेरी भावनाए हैं | करीब एक बजे में पेशाब करने के लिए बाहर आया तो शेरा पता नहीं कीस तरह दिवार पर चढ़ गया | जब मैंने इस खतरनाक कैदी को भागते हुए देखा तो चोरी का कैदी होने के बावजूद भी में इसका भागना सहन न कर सका और मैंने एक पत्थर उठाकर इस पर दे मार | पत्थर लगते ही यह इस और आ गिरा | उसके बाद जो हुआ, आपके सामने हैं |” जेलर ने शेखजी का बयान सूना और बहुत प्रभावित हुआ | उसी समय उसने कहा | शेखजी जैसे महान पुरुष को इस तरह जेल में रखना उचित नहीं, इन्हें छोड़ दिया जाए | इन जैसे ईमानदार लोगों की पुलिस में बड़ी जरुरत हैं | अत: इन्हें में इस नगर का दरोगा नियुक्त करता हूँ |” अब शेखजी चोर नहीं थे | बेवकूफ और मुर्ख भी नहीं थे | अब तो वे नगर के एकमात्र दरोगा थे | यह सब किस्मत के खेल हैं | परमात्मा चाहे तो कुछ भी हो सकता है | बिलकुल ऐसा ही चमत्कार शेखजी के साथ हुआ | अब उन्हें विश्वास हो गया की यदि अपनी मूर्खता छोड़कर वह जरा भी बुद्धि से कार्य करें तो सारे कष्ट दूर हो सकते हैं |
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